सिंहो मृगेन्द्रः पञ्चास्यो हर्यक्षः केसरी हरिः । शार्दूलद्वीपिनौ व्याघ्रे तरक्षुस्तु मृगादनः ॥ १ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | सिंह | सिंहः | पुंलिङ्गः | सिञ्चति । | क | उणादिः | अकारान्तः |
2 | मृगेन्द्र | मृगेन्द्रः | पुंलिङ्गः | मृगाणामिन्द्रः ॥ | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
3 | पञ्चास्य | पञ्चास्यः | पुंलिङ्गः | पञ्च विस्तृतमास्यमस्य । | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
4 | हर्यक्ष | हर्यक्षः | पुंलिङ्गः | हरिणी पिङ्गले अक्षिणी यस्य । | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
5 | केसरिन् | केसरी | पुंलिङ्गः | केसराः स्कन्धबालाः सन्त्यस्य । | इनि | तद्धितः | नकारान्तः |
6 | हरि | हरिः | पुंलिङ्गः | हरति । | इ | उणादिः | इकारान्तः |
7 | शार्दूल | शार्दूलः | पुंलिङ्गः | शारयति । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
8 | द्वीपिन् | द्वीपी | पुंलिङ्गः | द्वौ वर्णी ईयते । | तत्पुरुषः | समासः | नकारान्तः |
9 | व्याघ्र | व्याघ्रः | पुंलिङ्गः | व्याजिघ्रति । | क | उणादिः | अकारान्तः |
10 | तरक्षु | तरक्षुः | पुंलिङ्गः | तरं गतिं मार्ग वा क्षिणोति । | डु | कृत् | उकारान्तः |
11 | मृगादन | मृगादनः | पुंलिङ्गः | मृगमत्ति । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |