विष्वक्सेनप्रिया गृष्टिर्वाराही बदरेति च । मार्कवो भृङ्गराज: स्यात्काकमाची तु वायसी ॥ १५१ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | विश्वक्सेनप्रिया | विश्वक्सेनप्रिया | स्त्रीलिङ्गः | विष्वक्सेनस्य प्रिया ॥ | तत्पुरुषः | समासः | आकारान्तः |
2 | गृष्टि | गृष्टिः | स्त्रीलिङ्गः | गृह्णाति । | क्तिच् | कृत् | इकारान्तः |
3 | वाराही | वाराही | स्त्रीलिङ्गः | वराहस्येयम् । | अण् | तद्धितः | ईकारान्तः |
4 | बदरा | बदरा | स्त्रीलिङ्गः | बदति । | अरन् | बाहुलकात् | आकारान्तः |
5 | मार्कव | मार्कवः | पुंलिङ्गः | मारयति । | क्विप् | कृत् | अकारान्तः |
6 | भृङ्गराज | भृङ्गराजः | पुंलिङ्गः | भृङ्ग इव राजते। | अच् | कृत् | अकारान्तः |
7 | काकमाची | काकमाची | स्त्रीलिङ्गः | काकान् मञ्चते । | अण् | कृत् | ईकारान्तः |
8 | वायसी | वायसी | स्त्रीलिङ्गः | वायसानामियम् । | अण् | तद्धितः | ईकारान्तः |