देवभूयादिकं तद्वत्कृच्छ्रं सांतपनादिकम् । संन्यासवत्यनशने पुमान् प्रायोऽथ वीरहा ॥ ५२ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | देवभूय | देवभूयम् | नपुंसकलिङ्गः | देवस्य भावः। | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
2 | देवत्व | देवत्वम् | नपुंसकलिङ्गः | देवस्य भावः। | त्व | तद्धितः | अकारान्तः |
3 | देवसायुज्य | देवसायुज्यम् | नपुंसकलिङ्गः | दवस्य सायुज्यम् | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
4 | कृच्छ्र | कृच्छ्रम् | नपुंसकलिङ्गः | कृन्तति । | रक् | उणादिः | अकारान्तः |
5 | प्राय | प्रायः | पुंलिङ्गः | अच् | कृत् | अकारान्तः | |
6 | वीरहन् | वीरहा | पुंलिङ्गः | वीरोऽग्निः । तं हन्ति । | क्विप् | कृत् | नकारान्तः |