काकली तु कले सूक्ष्मे ध्वनौ तु मधुरास्फुटे । कलो मन्द्रस्तु गम्भीरे तारोऽत्युच्चैः त्रयस्त्रिषु ॥ २ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | काकली | काकली | स्त्रीलिङ्गः | ईषत्कलः काकली । | इन् | उणादिः | ईकारान्तः |
2 | कल | कलः | पुंलिङ्गः | स चासावस्फुटोऽव्यक्ताक्षरश्च । तादृशे ध्वनौ कल: । | घः | कृत् | अकारान्तः |
3 | मन्द्र | मन्द्रः | पुंलिङ्गः | गम्भीरे मेघादिध्वनौ । | रक् | उणादिः | अकारान्तः |
4 | तार | तारः | पुंलिङ्गः | तारयति अतिक्रामत्यन्याञ्शब्दान् । | अच् | कृत् | अकारान्तः |