भृतको भृतिभुक्कर्मकरो वैतनिकोऽपि सः । वार्तावहो वैवधिकः भारवाहस्तु भारिकः ॥ १५ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | भृतक | भृतकः | पुंलिङ्गः | भ्रियते स्म । | क्तः | कृत् | अकारान्तः |
2 | भृतिभुज् | भृतिभुज् | पुंलिङ्गः | भृतिं वेतनं भुङ्क्ते । | क्विप् | कृत् | जकारान्तः |
3 | कर्मकर | कर्मकरः | पुंलिङ्गः | कर्म करोति । | ट | कृत् | अकारान्तः |
4 | वैतनिक | वैतनिकः | पुंलिङ्गः | वेतनेन जीवति । | ठक् | तद्धितः | अकारान्तः |
5 | वार्तावह | वार्तावहः | पुंलिङ्गः | वार्ताया वहः ॥ | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
6 | वैवधिक | वैवधिकः | पुंलिङ्गः | विवधं वीवधं वा वहति । | ठक् | तद्धितः | अकारान्तः |
7 | भारवाह | भारवाहः | पुंलिङ्गः | भारं वहति । | अण् | कृत् | अकारान्तः |
8 | भारिक | भारिकः | पुंलिङ्गः | भारोऽस्ति वाह्यत्वेनास्य । | ठन् | तद्धितः | अकारान्तः |