संव्यानमुत्तरीयं च चोल कूर्पासकौ स्त्रियाः । नीशार: स्यात्प्रावरणे हिमानिलनिवारणे ॥ ११८ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | संव्यान | संव्यानम् | नपुंसकलिङ्गः | संवीयतेऽनेन । | ल्युट् | कृत् | अकारान्तः |
2 | उत्तरीय | उत्तरीयम् | नपुंसकलिङ्गः | उत्तरस्मिन्देहभागे भवम् । | छ | तद्धितः | अकारान्तः |
3 | चोल | चोलः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः | चोल्यतेऽनेन । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
4 | कूर्पासक | कूर्पासकः | पुंलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | कूर्परेऽस्यते कृपरोऽस्यतेऽत्र वा । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
5 | नीशार | नीशारः | पुंलिङ्गः | नितरां शीर्येते हिमानिलावत्र । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |