विभ्राड् भ्राजिष्णुरोचिष्णू भूषा तु स्यादलंक्रिया । अलङ्कारस्त्वाभरणं परिष्कारो विभूषणम् ॥ १०१ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | विभ्राज् | विभ्राज् | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | भ्राजते तच्छीलः । | क्विप् | कृत् | जकारान्तः |
2 | भ्राजिष्णु | भ्राजिष्णुः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | इष्णुच् | तद्धितः | उकारान्तः | |
3 | रोचिष्णु | रोचिष्णुः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | रोचते तच्छीलः | इष्णुच् | कृत् | उकारान्तः |
4 | भूषा | भूषा | स्त्रीलिङ्गः | भूषणम् । | अ | कृत् | आकारान्तः |
5 | अलङ्क्रिया | अलङ्क्रिया | स्त्रीलिङ्गः | अलङ्करणम् । | श | कृत् | आकारान्तः |
6 | अलङ्कार | अलङ्कारः | पुंलिङ्गः | अलंक्रियतेऽनेन । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
7 | आभरण | आभरणम् | नपुंसकलिङ्गः | ल्युट् | कृत् | अकारान्तः | |
8 | परिष्कार | परिष्कारः | पुंलिङ्गः | घञ् | कृत् | अकारान्तः | |
9 | विभूषण | विभूषणम् | नपुंसकलिङ्गः | विभूष्यतेऽनेन ॥ | ल्युट् | कृत् | अकारान्तः |