गोचरा इन्द्रियार्थाश्च हृषीकं विषयीन्द्रियम् । कर्मेन्द्रियं तु पाय्वादि मनोनेत्रादि धीन्द्रियम् ॥ ८ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | हृषीक | हृषीकम् | नपुंसकलिङ्गः | हृष्यन्त्यनेन । | ईकन् | उणादिः | अकारान्तः |
2 | विषयिन् | विषयी | नपुंसकलिङ्गः | विसिन्वन्ति निबध्नन्तीन्द्रियाणि । | बहुव्रीहिः | समासः | नकारान्तः |
3 | इन्द्रिय | इन्द्रियम् | नपुंसकलिङ्गः | इन्द्रस्यात्मनो लिङ्गम् । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
4 | कर्मेन्द्रिय | कर्मेन्द्रियम् | नपुंसकलिङ्गः | कर्मसाधकमिन्द्रियं कर्मेन्द्रियम् । | समासः | अकारान्तः | |
5 | धीन्द्रिय | धीन्द्रियम् | नपुंसकलिङ्गः | धीसाधनमिन्द्रियं धीन्द्रियम् । | समासः | अकारान्तः |