विष्णावप्यजिताव्यक्तौ सूतस्त्वष्टरि सारथौ । व्यक्त: प्राज्ञेऽपि दृष्टान्तावुभे शास्त्रनिदर्शने॥ ६२ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | अजित | अजितः | पुंलिङ्गः | नजीयते स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
2 | अव्यक्त | अव्यक्तः | पुंलिङ्गः | न व्यज्यते स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
3 | सूत | सूतः | पुंलिङ्गः | सुवति स्म, सूयते स्म वा | क्त | कृत् | अकारान्तः |
4 | व्यक्त | व्यक्तः | पुंलिङ्गः | व्यज्यते स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
5 | दृष्टान्त | दृष्टान्तः | पुंलिङ्गः | दृष्टोऽन्तोऽत्र | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |