स्थाणुः शर्वोऽप्यथ द्रोण: काकेऽप्याजे रवे रणः । ग्रामणीर्नापिते पुंसि श्रेष्ठे ग्रामाधिपे त्रिषु ॥ ४९ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | स्थाणु | स्थाणुः | पुंलिङ्गः | तिष्ठति | णु | उणादिः | उकारान्तः |
2 | द्रोण | द्रोणः | पुंलिङ्गः | द्रवति | न | उणादिः | अकारान्तः |
3 | रण | रणः | पुंलिङ्गः | रणति | अच् | कृत् | अकारान्तः |
4 | ग्रामणी | ग्रामणी | पुंलिङ्गः | ग्रामं नयति | क्विप् | कृत् | ईकारान्तः |