काकेभगण्डौ करटौ गजगण्डकटी कटौ । शिपिविष्टस्तु खलतौ दुश्चर्मणि महेश्वरे ॥ ३४ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | करट | करटः | पुंलिङ्गः | क’ इति रटति | अच् | कृत् | अकारान्तः |
2 | कट | कटः | पुंलिङ्गः | कटति | अच् | कृत् | अकारान्तः |
3 | शिपिविष्ट | शिपिविष्टः | पुंलिङ्गः | शिपिषु रश्मिषु पशुषु वा विष्टः | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |