उपशायो विशायश्च पर्यायशयनार्थकौ । अर्तनं च ऋतीया च हृणीया च घृणार्थके ॥ ३२ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | उपशाय | उपशायः | पुंलिङ्गः | उपशयनम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
2 | विशाय | विशायः | पुंलिङ्गः | विशयनम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
3 | अर्तन | अर्तनम् | नपुंसकलिङ्गः | घञ् | कृत् | अकारान्तः | |
4 | ऋतीया | ऋतीया | स्त्रीलिङ्गः | ईयङ् | कृत् | आकारान्तः | |
5 | हृणीया | हृणीया | स्त्रीलिङ्गः | यक् | कृत् | आकारान्तः | |
6 | घृणा | घृणा | स्त्रीलिङ्गः | आकारान्तः |