निधाय तक्ष्यते यत्र काष्ठे काष्ठं स उद्धनः । स्तम्बघ्नस्तु स्तम्बघन: स्तम्बो येन निहन्यते ॥ ३५ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | उध्दन | उध्दनम् | नपुंसकलिङ्गः | ऊर्ध्वंहन्यतेऽस्मिन् | निपातनात् | अकारान्तः | |
2 | स्तम्बघ्न | स्तम्बघ्नम् | नपुंसकलिङ्गः | स्तम्बो हन्यते येन | क | कृत् | अकारान्तः |
3 | स्तम्बघन | स्तम्बघनम् | नपुंसकलिङ्गः | स्तम्बो हन्यते येन | अप् | कृत् | अकारान्तः |