निर्वेश उपभोगः स्यात्परिसर्पः परिक्रिया । विधुरं तु प्रविश्लेषेऽभिप्रायश्छन्द आशयः ॥ २० ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | निर्वेश | निर्वेशः | पुंलिङ्गः | निर्वेशनम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
2 | उपभोग | उपभोगः | पुंलिङ्गः | उपभोजनम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
3 | परिसर्प | परिसर्पः | पुंलिङ्गः | समन्तात्सर्पणम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
4 | परिक्रिया | परिक्रिया | स्त्रीलिङ्गः | परिकरणम् | श | कृत् | आकारान्तः |
5 | विधुर | विधुरम् | नपुंसकलिङ्गः | विगता धूः कार्यभारः | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
6 | प्रविश्लेष | प्रविश्लेषः | पुंलिङ्गः | प्रविश्लेषणम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
7 | अभिप्राय | अभिप्रायः | पुंलिङ्गः | अभिप्रयणम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
8 | छन्द | छन्दः | पुंलिङ्गः | छन्दनम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
9 | आशय | आशयः | पुंलिङ्गः | आशयनम् | ल्युट् | कृत् | अकारान्तः |