हिंसाकर्माभिचार: स्याज्जागर्या जागरा द्वयोः । विघ्नोऽन्तराय: प्रत्यूहः स्यादुपघ्नोऽन्तिकाश्रये ॥ १९ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
---|---|---|---|---|---|---|---|
1 | हिंसाकर्मन् | हिंसाकर्मन्म् | नपुंसकलिङ्गः | हिंसाफलं कर्म | तत्पुरुषः | समासः | नकारान्तः |
2 | अभिचार | अभिचारः | पुंलिङ्गः | अभिचरणम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
3 | जागर्या | जागर्या | स्त्रीलिङ्गः | जागरणम् | यक् | कृत् | आकारान्तः |
4 | जागरा | जागरा | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः | जागरणम् | निपातनात् | आकारान्तः | |
5 | विघ्न | विघ्नः | पुंलिङ्गः | विहननम् | क | कृत् | अकारान्तः |
6 | अन्तराय | अन्तरायः | पुंलिङ्गः | अन्तर्मध्ये, अन्तरस्य व्यवधानस्य वायनम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
7 | प्रत्यूह | प्रत्यूहः | पुंलिङ्गः | प्रत्यूहनम् | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
8 | उपघ्न | उपघ्नः | पुंलिङ्गः | उपहन्यते ।उपहननं वा | निपातनात् | अकारान्तः | |
9 | अन्तिकाश्रय | अन्तिकाश्रयः | पुंलिङ्गः | अन्तिके आश्रीयते, आश्रयणं वा | अच् | कृत् | अकारान्तः |