निर्वाणो मुनिवह्न्यादौ निर्वातस्तु गताऽनिले । पक्वं परिणते गूनं हन्ने मीढं तु मूत्रिते ॥ ९६ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
---|---|---|---|---|---|---|---|
1 | निर्वाण | निर्वाणः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | निर्वाति स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
2 | निर्वात | निर्वातः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | गतश्चासावनिलश्च | क्त | कृत् | अकारान्तः |
3 | पक्व | पक्वः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | अकारान्तः | |||
4 | परिणत | परिणतः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | परिणमति स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
5 | गून | गूनः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | गूयते स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
6 | हन्न | हन्नः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | हद्यते स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
7 | मीढ | मीढः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | मिह्यते स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |
8 | मूत्रित | मूत्रितः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | मूत्र्यते स्म | क्त | कृत् | अकारान्तः |