वातायनं गवाक्षोऽथ मण्डपोऽस्त्री जनाश्रयः । हर्यादि धनिनां वासः प्रासादो देवभूभुजाम् ॥ ९ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | वातायन | वातायनम् | नपुंसकलिङ्गः | ईयतेऽनेन । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
2 | गवाक्ष | गवाक्षः | पुंलिङ्गः | गवामक्षीव । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
3 | मण्डप | मण्डपः | पुंलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | मण्डनं मण्डः । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
4 | जनाश्रय | जनाश्रयः | पुंलिङ्गः | जनानामाश्रयः । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
5 | हर्म्य | हर्म्यम् | नपुंसकलिङ्गः | हरति मनः । | यत् | उणादिः | अकारान्तः |
6 | प्रसाद | प्रासादः | पुंलिङ्गः | प्रसीदति मनोऽत्र । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |