स तु सर्वधुरीणो यो भवेत्सर्वधुरावहः । माहेयी सौरभेयी गौरुस्रा माता च शृङ्गिणी ॥ ६६ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | सर्वधुरीण | सर्वधुरीणः | पुंलिङ्गः | सर्वा चासौ धूश्च । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
2 | सर्वधुरावह | सर्वधुरावहः | पुंलिङ्गः | सर्वधुराया वहः ॥ | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
3 | माहेयी | माहेयी | स्त्रीलिङ्गः | मह्या अपत्यं स्त्री | ढक् | तद्धितः | ईकारान्तः |
4 | सौरभेयी | सौरभेयी | स्त्रीलिङ्गः | सुरभ्या अपत्यम् ॥ | ढक् | तद्धितः | ईकारान्तः |
5 | गो | गो | स्त्रीलिङ्गः | डो | उणादिः | ओकारान्तः | |
6 | उस्त्रा | उस्त्रा | स्त्रीलिङ्गः | वसति क्षीरमस्याम् । | रक् | उणादिः | आकारान्तः |
7 | मातृ | मातृः | स्त्रीलिङ्गः | मान्यते । | तृन् | उणादिः | ऋकारान्तः |
8 | शृङ्गिणी | शृङ्गिणी | स्त्रीलिङ्गः | शृङ्गमस्त्यस्याः । | इनि | तद्धितः | ईकारान्तः |