घृतमाज्यं हवि: सर्पिः नवनीतं नवोद्धृतम् । तत्तु हैयङ्गवीनं यद् ह्योगोदोहोद्भवं घृतम् ॥ ५२ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | घृत | घृतम् | नपुंसकलिङ्गः | घ्रियते । | क्त | कृत् | अकारान्तः |
2 | आज्य | आज्यम् | नपुंसकलिङ्गः | आऽज्यतेऽनेन । | क्यप् | कृत् | अकारान्तः |
3 | हविस् | हविस्म् | नपुंसकलिङ्गः | हूयते । | इसि | उणादिः | सकारान्तः |
4 | सर्पिस् | सर्पिस्म् | नपुंसकलिङ्गः | सर्पति | इसि | उणादिः | सकारान्तः |
5 | नवनीत | नवनीतम् | नपुंसकलिङ्गः | नवं च तन्नीतं च । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
6 | नवोद्धृत | नवोद्धृतम् | नपुंसकलिङ्गः | अकारान्तः | |||
7 | हैयङ्गवीन | हैयङ्गवीनम् | नपुंसकलिङ्गः | ह्योगोदोहादुद्भवति । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |