गवलं माहिषं शृङ्गमभ्रकं गिरिजामले । स्रोतोऽञ्जनं तु सौवीरं कापोताञ्जनयामुने ॥ १०० ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | गवल | गवलम् | नपुंसकलिङ्गः | गवामलम् । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
2 | अभ्रक | अभ्रकम् | नपुंसकलिङ्गः | अभ्रति, अभ्र्यते वा । | क्वुन् | उणादिः | अकारान्तः |
3 | गिरिज | गिरिजम् | नपुंसकलिङ्गः | गिरौ जातम् । | ड | कृत् | अकारान्तः |
4 | अमल | अमलम् | नपुंसकलिङ्गः | न मलमस्य | कलच् | उणादिः | अकारान्तः |
5 | स्रोतोञ्जन | स्रोतोञ्जनम् | नपुंसकलिङ्गः | अज्यते नयनमनेन । | ल्युट् | कृत् | अकारान्तः |
6 | सौवीर | सौवीरम् | नपुंसकलिङ्गः | सुवीरे देशे भवम् । | अण् | तद्धितः | अकारान्तः |
7 | कापोताञ्जन | कापोताञ्जनम् | नपुंसकलिङ्गः | कपोतस्येदम् । | अण् | तद्धितः | अकारान्तः |
8 | यामुन | यामुनम् | नपुंसकलिङ्गः | यमुनायां भवम् । | अण् | तद्धितः | अकारान्तः |