मङ्गल्यको मसूरोऽथ मकुष्ठकमयुष्टकौ । वनमुद्रे सर्षपे तु द्वौ तन्तुभकदम्बकौ ॥ १७ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | मङ्गल्यक | मङ्गल्यकः | पुंलिङ्गः | मङ्गले साधुः । | यत् | तद्धितः | अकारान्तः |
2 | मसूर | मसूरः | पुंलिङ्गः | मस्यति, मस्यते वा । | उरन् | उणादिः | अकारान्तः |
3 | मकुष्ठक | मकुष्ठकः | पुंलिङ्गः | मङ्कति, मङ्क्यते वा । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
4 | मयुष्ठक | मयुष्ठकः | पुंलिङ्गः | मयश्चासौ स्थकश्च । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
5 | वनमुद्ग | वनमुद्गः | पुंलिङ्गः | वनस्य मुद्गः ॥ | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
6 | सर्षप | सर्षपः | पुंलिङ्गः | सरति स्नेहोऽस्मात् । | अप | उणादिः | अकारान्तः |
7 | तन्तुभ | तन्तुभः | पुंलिङ्गः | तन्तुना भाति । | क | कृत् | अकारान्तः |
8 | कदम्बक | कदम्बकः | पुंलिङ्गः | कन्दति, कन्दयति वा । | अम्बच् | उणादिः | अकारान्तः |