शूरो वीरश्च विक्रान्त: जेता जिष्णुश्च जित्वरः । सांयुगीनो रणे साधुः शस्त्राजीवादयस्त्रिषु ॥ ७७ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | शूर | शूरः | पुंलिङ्गः | शूरयति । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
2 | वीर | वीरः | पुंलिङ्गः | वीरयति । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
3 | विक्रान्त | विक्रान्तः | पुंलिङ्गः | विक्रमति स्म । | क्त | कृत् | अकारान्तः |
4 | जेतृ | जेतृः | पुंलिङ्गः | जयनशीलः । | तृन् | कृत् | ऋकारान्तः |
5 | जिष्णु | जिष्णुः | पुंलिङ्गः | क्स्नु | कृत् | उकारान्तः | |
6 | जित्वर | जित्वरः | पुंलिङ्गः | क्वरप् | कृत् | अकारान्तः | |
7 | सांयुगीन | सांयुगीनः | पुंलिङ्गः | संयुगे रणे साधुः | खञ् | तद्धितः | अकारान्तः |