स्यादुरस्वानुरसिलो रथिनो रथिको रथी । कामंगाम्यनुकामीन: ह्यत्यन्तीनस्तथा भृशम् ॥ ७६ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | उरस्वत् | उरस्वत् | पुंलिङ्गः | ऊर्जातिशयेनान्वितः ॥ | मतुप् | तद्धितः | तकारान्तः |
2 | उरसिल | उरसिलः | पुंलिङ्गः | उरसा बलं लक्ष्यते-इति स्वामी । | इलच् | तद्धितः | अकारान्तः |
3 | रथिन् | रथिनः | पुंलिङ्गः | रथोऽस्यास्ति । | इनि | तद्धितः | नकारान्तः |
4 | रथिक | रथिकः | पुंलिङ्गः | ठन् | तद्धितः | अकारान्तः | |
5 | रथी | रथी | पुंलिङ्गः | इनि | तद्धितः | ईकारान्तः | |
6 | अनुकामीन | अनुकामीनः | पुंलिङ्गः | कामस्य सदृशम् । | ख | तद्धितः | अकारान्तः |
7 | अत्यन्तीन | अत्यन्तीनः | पुंलिङ्गः | अन्तस्यात्ययः । | अव्ययीभावः | समासः | अकारान्तः |