उदासीनः परतरः पार्ष्णिग्राहस्तु पृष्ठतः । रिपौ वैरिसपत्नारिद्विषद्वेषणदुर्हृदः ॥ १० ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
---|---|---|---|---|---|---|---|
1 | उदासीन | उदासीनः | पुंलिङ्गः | उदास्ते । | शानच् | कृत् | अकारान्तः |
2 | पार्ष्णिग्राह | पार्ष्णिग्राहः | पुंलिङ्गः | पार्ष्णिं पश्चात्पदं गृह्णाति । | अण् | कृत् | अकारान्तः |
3 | रिपु | रिपुः | पुंलिङ्गः | रपति दोषम् । | कु | उणादिः | उकारान्तः |
4 | वैरिन् | वैरिन् | पुंलिङ्गः | वीरस्य कर्म भावो वा । | अण् | तद्धितः | नकारान्तः |
5 | सपत्न | सपत्नः | पुंलिङ्गः | सपत्नीव । | निपातनात् | अकारान्तः | |
6 | अरि | अरिः | पुंलिङ्गः | इयर्ति विरोधम् । | इ | उणादिः | इकारान्तः |
7 | द्विषत् | द्विषत् | पुंलिङ्गः | शतृ | कृत् | तकारान्तः | |
8 | द्वेषण | द्वेषणः | पुंलिङ्गः | द्वेषशीलः । | युच् | कृत् | अकारान्तः |
9 | दुर्हृद् | दुर्हृद् | पुंलिङ्गः | दुष्टं हृदयमस्य । | तत्पुरुषः | समासः | दकारान्तः |