तनूरुहं रोम लोम तद्वृद्धौ श्मश्रु पुंमुखे । आकल्पवेषौ नेपथ्यं प्रतिकर्म प्रसाधनम् ॥ ९९ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | तनूरुह | तनूरुहः | पुंलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | तन्वां रोहति । | क | कृत् | अकारान्तः |
2 | रोमन् | रोम | नपुंसकलिङ्गः | रोहति | निपातनात् | नकारान्तः | |
3 | लोमन् | लोम | नपुंसकलिङ्गः | निपातनात् | नकारान्तः | ||
4 | श्मश्रु | श्मश्रुम् | नपुंसकलिङ्गः | श्म मुखं श्रयति । | डु | कृत् | उकारान्तः |
5 | आकल्प | आकल्पः | पुंलिङ्गः | आकल्पनम् । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
6 | वेष | वेषः | पुंलिङ्गः | वेषणम्, विष्यते, वा । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
7 | नेपथ्य | नेपथ्यम् | नपुंसकलिङ्गः | निनो नेत्रस्य, नेर्नेतुर्वा पथ्यम् । | विच् | कृत् | अकारान्तः |
8 | प्रतिकर्मन् | प्रतिकर्म | नपुंसकलिङ्गः | प्रत्यङ्गं प्रतिख्यातं वा कर्म । | तत्पुरुषः | समासः | नकारान्तः |
9 | प्रसाधन | प्रसाधनम् | नपुंसकलिङ्गः | प्रसाध्यतेऽनेनाङ्गम् । | ल्युट् | कृत् | अकारान्तः |