प्रालम्बमृजुलम्बि स्यात्कण्ठाद्वैकक्षकं तु तत् । यत्तिर्यक् क्षिप्तमुरसि शिखास्वापीडशेखरौ ॥ १३६ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | प्रालम्ब | प्रालम्बम् | नपुंसकलिङ्गः | माल्यमेव कण्ठादूर्ध्वं लम्बमानम् । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
2 | वैकक्षक | वैकक्षकम् | नपुंसकलिङ्गः | विशिष्टः कक्षोऽस्माद्विकक्षमुरः । | अण् | कृत् | अकारान्तः |
3 | आपीड | आपीडः | पुंलिङ्गः | शिखाक्षिप्तं माल्यम् । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
4 | शेखर | शेखरः | पुंलिङ्गः | शिङ्खति । | अर | बाहुलकात् | अकारान्तः |