कक्कोलकं कोशफलमथ कर्पूरमस्त्रियाम् । घनसारश्चन्द्रसंज्ञः सिताभ्रो हिमवालुका ॥ १३० ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | कक्कोलक | कक्कोलकम् | नपुंसकलिङ्गः | ककन्तेऽत्र । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
2 | कोशफल | कोशफलम् | नपुंसकलिङ्गः | कोशे फलमस्य ॥ | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
3 | कर्पूर | कर्पूरः | पुंलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | किरति । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
4 | घनसार | घनसारः | पुंलिङ्गः | घनो दृढः सारोऽस्य । | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
5 | चन्द्रसंज्ञ | चन्द्रसंज्ञः | पुंलिङ्गः | चन्द्रस्य संज्ञा संज्ञा यस्य ॥ | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
6 | सिताभ्र | सिताभ्रः | पुंलिङ्गः | सितं शैत्यं बन्धनं वा चन्द्रं वा अभ्रति । | अण् | कृत् | अकारान्तः |
7 | हिमवालुका | हिमवालुका | स्त्रीलिङ्गः | हिमा चासौ वालुका च ॥ | तत्पुरुषः | समासः | आकारान्तः |