पशूनां समजोऽन्येषां समाजोऽथ सधर्मिणाम् । स्यान्निकायः पुञ्जराशी तूत्करः कूटमस्त्रियाम् ॥ ४२ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | समज | समजः | पुंलिङ्गः | संवीयतेऽत्र । | अप् | कृत् | अकारान्तः |
2 | समाज | समाजः | पुंलिङ्गः | संवीयतेऽत्र । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
3 | निकाय | निकायः | पुंलिङ्गः | निचीयते । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
4 | पुञ्ज | पुञ्जः | पुंलिङ्गः | पिञ्जयति, पिञ्ज्यते वा । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
5 | राशि | राशिः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः | रश्यते । | इण् | उणादिः | इकारान्तः |
6 | उत्कर | उत्करः | पुंलिङ्गः | उत्कीर्यते । | अप् | कृत् | अकारान्तः |
7 | कुट | कुटः | पुंलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | कूटयति । | अच् | कृत् | अकारान्तः |