लोहपृष्ठस्तु कङ्कः स्यादथ चाष: किकीदिविः । कलिङ्गभृङ्गधूम्याटा अथ स्याच्छतपत्रकः ॥ १६ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | लोहपृष्ठ | लोहपृष्ठः | पुंलिङ्गः | लोहमिव पृष्ठमस्य ॥ | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
2 | कङ्क | कङ्कः | पुंलिङ्गः | कङ्कते । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
3 | चाष | चाषः | पुंलिङ्गः | चाषयति । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
4 | किकीदिवी | किकीदिविः | पुंलिङ्गः | ‘किकी' इति दीव्यति वाशते । | क्विन् | उणादिः | ईकारान्तः |
5 | कलिङ्ग | कलिङ्गः | पुंलिङ्गः | के मूर्ध्नि लिङ्गं चूडास्य । | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |
6 | भृङ्ग | भृङ्गः | पुंलिङ्गः | भृङ्ग इव । कृष्णत्वात् । | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
7 | धूम्याट | धूम्याटः | पुंलिङ्गः | धूम्या धूमसमूह इवाटति । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
8 | शतपत्त्रक | शतपत्त्रकः | पुंलिङ्गः | शतं पत्राण्यस्य ॥ | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |