पूतिकाष्ठं च सप्त स्युर्देवदारुण्यथ द्वयोः । पाटलि: पाटला मोघा काचस्थाली फलेरुहा ॥ ५४ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
---|---|---|---|---|---|---|---|
1 | पूतिकाष्ठ | पूतिकाष्ठम् | नपुंसकलिङ्गः | पूति च तत्काष्ठम् ॥ | तत्पुरुषः | समासः | अकारान्तः |
2 | देवदारु | देवदारु | पुंलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | देवस्य दारु ॥ | तत्पुरुषः | समासः | उकारान्तः |
3 | पाटलि | पाटलिः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः | पाश्चासौ टलिश्च ॥ | तत्पुरुषः | समासः | इकारान्तः |
4 | पाटला | पाटला | स्त्रीलिङ्गः | पाटं लाति । | तत्पुरुषः | समासः | आकारान्तः |
5 | अमोघा | अमोघा | स्त्रीलिङ्गः | न मोघा । | तत्पुरुषः | समासः | आकारान्तः |
6 | काचस्थाली | काचस्थाली | स्त्रीलिङ्गः | काचस्य कार्ष्ण्यस्य स्थाली पात्रम् ॥ | तत्पुरुषः | समासः | ईकारान्तः |
7 | फलेरुहा | फलेरुहा | स्त्रीलिङ्गः | फले रोहति । | तत्पुरुषः | समासः | आकारान्तः |