तुण्डिकेरी समुद्रान्ता कार्पासी बदरेति च । भारद्वाजी तु सा वन्या शृङ्गी तु ऋषभो वृषः ॥ ११६ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | तुण्डिकेरी | तुण्डिकेरी | स्त्रीलिङ्गः | तुण्डीति । | तत्पुरुषः | समासः | ईकारान्तः |
2 | समुद्रान्ता | समुद्रान्ता | स्त्रीलिङ्गः | समुद्रोऽन्तो यस्याः । | बहुव्रीहिः | समासः | आकारान्तः |
3 | कार्पासी | कार्पासी | स्त्रीलिङ्गः | करोति क्रियते वा । | पास | उणादिः | ईकारान्तः |
4 | बदरा | बदरा | स्त्रीलिङ्गः | बदति । | अर | बाहुलकात् | आकारान्तः |
5 | भारद्वाजी | भारद्वाजी | स्त्रीलिङ्गः | भरद्वाजस्य मुनेरियम् । | अण् | तद्धितः | ईकारान्तः |
6 | शृङ्गी | शृङ्गी | स्त्रीलिङ्गः | शृणाति गदम् । | गन् | उणादिः | ईकारान्तः |
7 | ऋषभ | ऋषभः | पुंलिङ्गः | ऋषति । | अभच् | उणादिः | अकारान्तः |
8 | वृष | वृषः | पुंलिङ्गः | वर्षति । | क | कृत् | अकारान्तः |