त्रिष्वाहेयं विषास्थ्यादि स्फटायां तु फणा द्वयोः । समौ कञ्चुकनिर्मोकौ क्ष्वेडस्तु गरलं विषम् ॥ ९ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | आहेय | आहेयम् | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | अहौ भवम् । | ढञ् | तद्धितः | अकारान्तः |
2 | स्फटा | स्फटा | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः | स्फटायामिति । | अच् | कृत् | आकारान्तः |
3 | फणा | फणा | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः | फणति । | अच् | कृत् | आकारान्तः |
4 | कञ्चुक | कञ्चुकः | पुंलिङ्गः | कञ्चते । | उकन् | बाहुलकाद् | अकारान्तः |
5 | निर्मोक | निर्मोकः | पुंलिङ्गः | निश्चयेन मुच्यते । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
6 | क्ष्वेड | क्ष्वेडः | पुंलिङ्गः | क्ष्वेडते मोहयति । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
7 | गरल | गरलम् | पुंलिङ्गः | गिरति जीवम् । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
8 | विष् | विषम् | पुंलिङ्गः | वेवेष्टि कायम् । | कः | कृत् | षकारान्तः |