दर्वीकरो दीर्घपृष्ठो दन्दशूको बिलेशयः । उरगः पन्नगो भोगी जिह्मगः पवनाशनः ॥ ८ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | दर्वीकर | दर्वीकरः | पुंलिङ्गः | दर्व्याकारः फण एव करो यस्य प्रहारसाधनत्वात् । | टः | कृत् | अकारान्तः |
2 | दीर्घपृष्ठ | दीर्घपृष्ठः | पुंलिङ्गः | दीर्घं पृष्ठमस्य । | अकारान्तः | ||
3 | दन्दशूक | दन्दशूकः | पुंलिङ्गः | गर्हितं दशति । | यङ् | कृत् | अकारान्तः |
4 | विलेशय | विलेशयः | पुंलिङ्गः | बिले शेते । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
5 | उरग | उरगः | पुंलिङ्गः | उरसा गच्छति । | डः | कृत् | अकारान्तः |
6 | पन्नग | पन्नगः | पुंलिङ्गः | पन्नं पतितं यथा तथा गच्छति । | डः | कृत् | अकारान्तः |
7 | भोगिन् | भोगी | पुंलिङ्गः | भोग: फणो वक्रगतिर्वास्यास्ति । | इनिः | तद्धितः | नकारान्तः |
8 | जिह्मग | जिह्मगः | पुंलिङ्गः | जिह्मं कुटिलं गच्छति । | ङः | कृत् | अकारान्तः |
9 | पवनाशन | पवनाशनः | पुंलिङ्गः | पवनोऽशनं यस्य । | बहुव्रीहिः | समासः | अकारान्तः |