छिद्रं निर्व्यथनं रोकं रन्धं श्वभ्रं वपा शुषिः । गर्तावटौ भुवि श्वभ्रे सरन्ध्रे शुषिरं त्रिषु ॥ २ ॥
शब्दसङ्ख्या | प्रातिपदिकम् | प्रथमान्तःशब्दः | लिङ्गम् | व्युत्पत्तिः | प्रत्ययः/ समासनाम | वृत्तिः/शब्दप्रकारः | किमन्तः शब्दः |
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1 | छिद्र | छिद्रम् | नपुंसकलिङ्गः | छिद्यते । | रक् | उणादिः | अकारान्तः |
2 | निर्व्यथन | निर्व्यथनम् | नपुंसकलिङ्गः | निश्चयेन व्यथनं भयं चलनं वा यत्र । | ल्युट् | कृत् | अकारान्तः |
3 | रोक | रोकम् | नपुंसकलिङ्गः | रोचतेऽत्र । | घञ् | कृत् | अकारान्तः |
4 | रन्ध्र | रन्ध्रम् | नपुंसकलिङ्गः | रमणम् । | क्विप् | कृत् | अकारान्तः |
5 | श्वभ्र | श्वभ्रम् | नपुंसकलिङ्गः | व्यन्तात्पचाद्यच् । | अच् | कृत् | अकारान्तः |
6 | वपा | वपा | स्त्रीलिङ्गः | उप्यतेऽत्र | आकारान्तः | ||
7 | शुषि | शुषिः | स्त्रीलिङ्गः | शुष्यत्यत्र । | इन् | उणादिः | इकारान्तः |
8 | गर्त | गर्तः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः | गर्तेति। | तन् | उणादिः | अकारान्तः |
9 | अवट | अवटः | पुंलिङ्गः | अवन्त्यस्मात् । | अटन् | उणादिः | अकारान्तः |
10 | शुषिर | शुषिरः | पुंलिङ्गः, स्त्रीलिङ्गः, नपुंसकलिङ्गः | रः | अकारान्तः |